नवरात्रि का सातवां दिन : माँ कालरात्रि का महत्व
नवरात्रि का सातवां दिन : माँ कालरात्रि का महत्व
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत उग्र और शक्तिशाली है, जो दुष्टों और अज्ञानता का नाश करती हैं। उन्हें काल या समय की रात्रि के रूप में जाना जाता है, और वे भक्तों के जीवन से भय, अज्ञान, और नकारात्मक शक्तियों का अंत करती हैं।
माँ कालरात्रि का रूप डरावना हो सकता है, लेकिन उनके भक्तों के लिए वह सौम्यता और रक्षा की प्रतीक हैं। इस दिन साधक माँ कालरात्रि की उपासना कर अपने जीवन में नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त करते हैं और मनोबल में वृद्धि पाते हैं।
माँ कालरात्रि का स्वरूप:
माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत उग्र है:
- उनका शरीर काला है, और वे तीन नेत्रों वाली हैं, जो ब्रह्मांड की प्रतीक हैं।
- उनकी चार भुजाएँ हैं: एक हाथ में तलवार और दूसरे में लोहे का कांटा (खड्ग) है, और दो हाथ वरद और अभय मुद्रा में हैं, जिससे वे अपने भक्तों को आशीर्वाद और सुरक्षा देती हैं।
- माँ कालरात्रि का वाहन गधा है, जो सादगी और विनम्रता का प्रतीक है।
उनके इस भयावह स्वरूप का उद्देश्य केवल दुष्टों का नाश करना है और भक्तों को सभी प्रकार के भय से मुक्त करना है। माँ कालरात्रि के क्रोध में भी उनके भक्तों के लिए प्रेम और करुणा का भाव रहता है।
माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व:
- भय से मुक्ति: माँ कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों के जीवन से सभी प्रकार के भय, संकट, और कष्ट दूर हो जाते हैं। वे अपने भक्तों को मानसिक शांति और साहस प्रदान करती हैं।
- नकारात्मक शक्तियों का अंत: माँ कालरात्रि की आराधना से साधक के जीवन में नकारात्मक ऊर्जाओं और बाधाओं का अंत होता है। उनका आशीर्वाद बुरी शक्तियों और नकारात्मक विचारों से रक्षा करता है।
- रोगों और कठिनाइयों से मुक्ति: माँ कालरात्रि की कृपा से साधक को रोगों और अन्य कठिनाइयों से छुटकारा मिलता है। उनकी पूजा से जीवन में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बना रहता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: माँ कालरात्रि की उपासना से साधक को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। वे अज्ञान के अंधकार को दूर कर साधक को ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती हैं।
आध्यात्मिक महत्व:
माँ कालरात्रि का यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ हों, हमें उनसे डरने की बजाय साहसपूर्वक उनका सामना करना चाहिए। उनकी पूजा से भक्तों के भीतर शक्ति, साहस और धैर्य का संचार होता है, और वे जीवन के सभी संकटों से निडर होकर मुकाबला करते हैं।
माँ कालरात्रि दुर्गा के नौ रूपों में से सातवीं शक्ति हैं, जिन्हें नवरात्रि के सातवें दिन पूजा जाता है। माँ कालरात्रि का रूप अत्यंत भयानक होता है, लेकिन उनका हृदय भक्तों के लिए सदैव शांत और कल्याणकारी रहता है। उनके इस रूप की पूजा करने से सभी प्रकार के भय और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
माँ कालरात्रि की कथा:
प्राचीन काल में दानव रक्तबीज ने देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। रक्तबीज को ब्रह्माजी से एक वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की एक-एक बूंद से नया रक्तबीज पैदा होगा। जब भी देवता उसे मारने का प्रयास करते, उसका रक्त धरती पर गिरने से और अधिक रक्तबीज उत्पन्न हो जाते। इससे देवता और भी संकट में पड़ जाते थे।
जब रक्तबीज का अत्याचार बढ़ने लगा, तब माँ दुर्गा ने अपनी शक्ति से कालरात्रि का रूप धारण किया। माँ कालरात्रि ने युद्ध के दौरान रक्तबीज को हराने का बीड़ा उठाया। जैसे ही माँ कालरात्रि ने रक्तबीज पर आक्रमण किया और उसके रक्त की बूंदें धरती पर गिरने लगीं, माँ ने अपने विकराल रूप में हर बूंद को अपने मुख में समाहित कर लिया, जिससे और रक्तबीज पैदा नहीं हो पाए। इस प्रकार, माँ कालरात्रि ने रक्तबीज का अंत कर देवताओं को स्वर्ग का अधिकार पुनः दिलाया।
माँ कालरात्रि का स्वरूप चार भुजाओं वाला है। उनके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कांटा होता है। अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा में होते हैं। उनका वाहन गधा है, जो एक अत्यंत अद्वितीय प्रतीक है। उनके इस रूप की आराधना से शत्रुओं का नाश होता है और भक्तों को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
माँ कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य के जीवन से सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं, और उसे अदम्य साहस व शक्ति प्राप्त होती है।
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Prachi The Tatwa Girl
ये है मेरा त्योहार जिसे मैं हवा इस शीर्षक के अंतर्गत लिखती हूं।
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