नवरात्रि का पांचवा दिन: माँ स्कंदमाता का महत्व

नवरात्रि का पांचवा दिन: माँ स्कंदमाता का महत्व

नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है। माँ स्कंदमाता, भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं, इसलिए उन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता को प्रेम, मातृत्व, और शांति का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि का संचार होता है।

माँ स्कंदमाता का स्वरूप:

माँ स्कंदमाता का रूप अत्यंत शांत, दिव्य और सौम्य होता है। वे चार भुजाओं वाली हैं:

  • एक हाथ में उन्होंने अपने पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को गोद में उठाया हुआ होता है।
  • दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है।
  • तीसरे और चौथे हाथ में वरद मुद्रा में आशीर्वाद देने का संकेत होता है।

माँ का वाहन सिंह है, और वे कमल के फूल पर विराजमान रहती हैं, इसलिए उन्हें ‘पद्मासना देवी’ भी कहा जाता है।

माँ स्कंदमाता की पूजा का महत्व:

  1. ज्ञान और मोक्ष का आशीर्वाद: माँ स्कंदमाता की आराधना से भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन के कठिन समय में सही मार्गदर्शन मिलता है। उनकी कृपा से व्यक्ति को मोक्ष का आशीर्वाद भी मिलता है।
  2. शांति और समृद्धि: उनकी पूजा करने से साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। वे साधकों को मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करती हैं, जिससे वे जीवन की सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं।
  3. संतान सुख: जो दंपत्ति संतान सुख की कामना करते हैं, उनके लिए माँ स्कंदमाता की आराधना विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। माँ के मातृत्व रूप से भक्तों को संतान से जुड़ी समस्याओं में भी लाभ मिलता है।

आध्यात्मिक महत्व:

माँ स्कंदमाता की पूजा से व्यक्ति की मनोबल और आत्मशक्ति में वृद्धि होती है। वे भक्त को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती हैं और उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। माँ स्कंदमाता की कृपा से साधक को मानसिक शांति और संतुलित जीवन की प्राप्ति होती है।

माँ स्कंदमाता की कथा

माँ स्कंदमाता का उल्लेख पुराणों और धर्मग्रंथों में भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता के रूप में किया गया है। उनकी कथा शक्ति, मातृत्व, और प्रेम का आदर्श उदाहरण है। देवी स्कंदमाता की कथा इस प्रकार है:

एक बार, असुरों के राजा तारकासुर ने अपने तप और शक्ति से देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। उसने अपनी कठोर तपस्या से भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर अमरत्व का वरदान माँगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि वह केवल शिव पुत्र द्वारा मारा जा सकता है। यह वरदान पाकर वह निश्चिंत हो गया क्योंकि भगवान शिव तपस्या में लीन थे और उनका विवाह भी नहीं हुआ था।

तारकासुर की बढ़ती दुष्टता से देवता त्रस्त हो गए और उन्होंने तारकासुर के वध के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह कराने की योजना बनाई। भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ और उनके पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है, ने बड़े होने पर तारकासुर का वध किया और देवताओं को उसके आतंक से मुक्त किया।

देवी पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद को युद्ध में विजय दिलाई और उनकी रक्षा की, इसलिए उन्हें “स्कंदमाता” कहा जाता है। माँ स्कंदमाता की पूजा करने से व्यक्ति को मातृत्व का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में आने वाली कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।

माँ स्कंदमाता की कृपा:

  • माँ स्कंदमाता की पूजा से भक्तों को सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • वे विशेष रूप से उन भक्तों की इच्छा पूरी करती हैं जो संतान सुख की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • उनकी कृपा से भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है, और जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं।

माँ स्कंदमाता का यह मातृ स्वरूप यह संदेश देता है कि जब भी भक्त को उनकी आवश्यकता होती है, माँ अपने प्रेम और ममता से उसकी रक्षा करती हैं। उनकी पूजा से साधक के जीवन में सुख, शांति और उन्नति आती है।

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Prachi The Tatwa Girl

ये है मेरा त्योहार जिसे मैं हवा इस शीर्षक के अंतर्गत लिखती हूं।
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