एक निवाला प्यार का
My first attempt at writing on a little deeper topic, which I always felt that I won’t be able to do justice. But then there is always a first time. Written this Kuch Dil Se lines. Framing this post with a wish and prayer for a happy, equal, and healthy humanity.
क्या? किसका? कैसा? है ये रंग
न जाने क्यों हम इसका-उसका मेरा-तुम्हारा में उलझ बैठे
ना जाने क्यों हम जीने के लिए एक दीवार बना बैठे
क्या इंसानियत के लिए इस दीवार का होना लाज़मी था ?
क्या जीने के लिए इस जात धर्म का दीवारों में सिमटना जरुर था ?
नहीं जानती कब हरा रंग और गेहुँआ का मतलब बदल गया
नहीं जानती कब काला और सफ़ेद का मायना बदल गया
इंसानियत का रंग क्या इतना फीका पड़ गया था
जो इंसानो को ही रंगो, धर्मो और क्षेत्र में बाँट दिया था
रंगो को तो खिलने दो महकने दो
उन्हें तो सुकून से बिखेरने दो इंद्रधनुष के रंग
रंग तो मेरा या तुम्हारा नहीं था
रंग तो बेरंग सा बिखरा यहीं था
भूख का रंग और दर्द का रंग
क्या हर जगह अलग सा दिखता है ?
उम्मीद का रंग और आस्था का रंग
क्या हर ज़मीन पर अलग सा बिखरता है ?
आशाओं का रंग और खुशियों का रंग
क्या अलग रंग की चादर ओढ़ता है ?
एक उम्मीद जिन्दा रहने के लिए जरुरी थी
एक चाहत इंसान को इंसान से जोड़ने के लिए जरुरी थी
क्या इस उम्मीद ने तुम्हारे पुरखो का रंग पूछा था
क्या इस उम्मीद ने तुम्हारे प्रार्थना का ढंग पूछा था
हर नज़र हर शख्स सिर्फ जीने की तमनन्ना लिए चला था
उस कतार में भी हमने जीने की एहमियत को समझा नहीं था
क्या सच में चीज़ो की एहमियत इतनी ही रह गयी थी
शहर बंदी में बंद दिमागों की कुण्डी भी क्या बंद रह गयी थी
इसी उम्मीद में की जिन्दा रहने के लिए इतना ही तो जरुरी था
एक निवाला प्यार का क्या इंसानियत को मंजूर नहीं था
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर या गुरूद्वारे
आज सिर्फ खुले है इंसानियत के द्वारे
कभी किसी भूखे को खाना खिला कर तो देखो
नाम पहचान पूछे बिना कभी एक निवाला बाँट कर तो देखो
वो ख़ुशी वो एहसास इबादत से बड़ा होगा
वो प्यार वो अपनापन दीवारों के परे होगा
जरुरत और जिद्द की लड़ाई में
दुआ सिर्फ इतनी ही उठती है
हर एक को वो प्यार का निवाला मिले
सबकी थाली में भरपेट खाना हो,
कोई खाने की आस में भूका ना रहे
इंसानियत से ऊपर कोई मजहब न हो
इंसानियत से ऊपर कोई धर्म ना हो
If you are interested in listening to this poem in my voice, just click on the youtube link and enjoy the poem.
मुझे इस विषय पर लिखने का मौका मिला इसके लिए शुक्रिया मानस. Thanks for tagging me.
Listen to more of my poems here.
Truly amazing… Touched my heart
thank you very much sudip
Bahut sundar likha Pragun ❤️ You have a very loving and sweet heart…
Shukriya Hema, you are so sweet and kind dear.
Such an important subject put in so nicely. I echo your sentiments Pragun. Keep writing….
Thanks a lot, Amit for appreciating.
This is so poignant… So apt … It moved me so much. Bahut Acha Likha hai
Thanks, Deepika for appreciating
Bahut shukriya
lovely Pragun. “इंसानियत से ऊपर कोई मजहब न हो
इंसानियत से ऊपर कोई धर्म ना हो” Kaash sab ye samajh jaye aur aapas me sirf pyaar bate.
Thank you, Alpana for appreciating the poem.
I really wish it to be true to realize humanity as supreme.
Just loved it Pragun ! So deep and touching !! And many thanks for visiting my blog !
Thank you, Ruchi for visiting and appreciating.
Stay connected
रंग नहीं जानता है, भेद नहीं मानता है।
ये प्यार ही तो है जो इंसान को सिर्फ इंसान मानता है।
बहुत सुंदर तरीके से बहुत बड़ी सच्चाई पेश कर दी आपने।
Shukriya Deepika, aur kya khub likha hai dost.
Simply superb
Thanks
This is need of the time. Everyone’s basic need is food and they should get it. Beautifully penned down
Thank you for stopping by
Yes, the basic need is sometimes hard to meet, the harsh reality of life for many.
wow your hindi is super awesome Pragun and you had touched your heart with this beautiful lines.
Thanks a lot, surbhi. Glad u liked it
Wow!! I just loved the way you have written this !! I am big fan of hindi poems
Thankyou Ruchi for visiting and liking the poem.
wow so inspiring poem. yeh zarurat hai aajki , kyu hai ladai dharam, jaat ki kyu nahi hai insaniyat ki kadar insaan ko
Thankyou Gurjeet for connecting with the poem.